Tuesday 26 January 2016

दिल के ज़ख्मो से - एक शायर का दर्द


जो जख्म मुफ्त मे ही अब जाये तो उन जख्मों को क्या खोना
गहरे जख्म अपने ही जब दे जाये तो उन जख्मों सा क्या होना
हमको जख्म सहना है मजबूरी वो जख्मों को हरा कर के
दवा जख्मों की जब मिल जाये तो उन जख्मों पे क्या रोना




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तुम्हें महफुज रखने की हमे कीमत चुकानी है
गली मे बिक रहे थे कल तुझे कीमत बतानी है
अपनी कीमत बताओं तुम तेरी कीमत अता कर दे
हमे समझा है आशिक जो वो मेरी भी दीवानी है 


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-ए 
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तुम्हें ही याद करता हूँ...

अकेले बैठे कर मे भी गमों का साथ करता हूँ
तुम्हें बाहों मे पाकर मे तुम्हारी बात करता हूँ
तुम्हें सपनों मे खोया था तुम्हें सपनों मे पाता हूँ
तेरे ख्वावों से मिलकर मे तुम्हें ही याद करता हूँ



हमें अाभास क्या होगा...

तुम्हारी बदनसीबी पर हमें अाभास क्या होगा
लिखे है शेर लाखों पर हमें अभ्यास क्या होगा
हमें बनना नहीं शायर मगर वक्त की ये बदिशं है
तुम्हारी इच्छा अधुरी है हमें अहसास क्या होगा